Friday, September 25, 2009

कहाँ शै हुई थी कहाँ मात की

न वो कुछ बोले न कुछ बात की
न पूछो कुछ भी उस रात की
न चाँद ही सोया न तारे छुपे
कहाँ शै हुई थी कहाँ मात की

4 comments:

  1. कम शब्दों में गहरी बात कह दी है आपने।
    धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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  2. Behad sundar rachnayen hai...sirf yahee nahee sabhee...wah! Mat kar lee...!

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  3. kahan din gujara kahan raat ki......

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