तुम कहीं भी रहो
मेरे दिल में रहोगी
जानता हूँ तुम्हें
अपने दिल की
न कहोगी
आता हूँ हर दिन
तेरे ही दर पर
यही सोचकर
कभी तो कुछ
कहोगी
ज़माने के कितने
ही झंझट से
देखा है तुझको
लड़ते कभी भिड़ते
कभी तो अपनी
कोई परेशानी
मुझे दोगी
मैं तेरा हूँ जान
तेरा रहूँगा
बता दो न
कब तुम मुझे
अपना कहोगी
Wednesday, September 23, 2009
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परेशानियों को बुलाने का एकदम अनूठा अंदाज़.
ReplyDeleteमन प्रसन्न हो गया.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com