Friday, September 25, 2009

कहाँ शै हुई थी कहाँ मात की

न वो कुछ बोले न कुछ बात की
न पूछो कुछ भी उस रात की
न चाँद ही सोया न तारे छुपे
कहाँ शै हुई थी कहाँ मात की

Wednesday, September 23, 2009

कब तुम मुझे अपना कहोगी

तुम कहीं भी रहो
मेरे दिल में रहोगी
जानता हूँ तुम्हें
अपने दिल की
न कहोगी
आता हूँ हर दिन
तेरे ही दर पर
यही सोचकर
कभी तो कुछ
कहोगी
ज़माने के कितने
ही झंझट से
देखा है तुझको
लड़ते कभी भिड़ते
कभी तो अपनी
कोई परेशानी
मुझे दोगी
मैं तेरा हूँ जान
तेरा रहूँगा
बता दो न
कब तुम मुझे
अपना कहोगी

Saturday, September 19, 2009

अभी लिखना शुरू नही किया है ,
बस आता हूँ एक-दो दिन में।
इंतज़ार कीजिये..........