न वो कुछ बोले न कुछ बात की
न पूछो कुछ भी उस रात की
न चाँद ही सोया न तारे छुपे
कहाँ शै हुई थी कहाँ मात की
Friday, September 25, 2009
Wednesday, September 23, 2009
कब तुम मुझे अपना कहोगी
तुम कहीं भी रहो
मेरे दिल में रहोगी
जानता हूँ तुम्हें
अपने दिल की
न कहोगी
आता हूँ हर दिन
तेरे ही दर पर
यही सोचकर
कभी तो कुछ
कहोगी
ज़माने के कितने
ही झंझट से
देखा है तुझको
लड़ते कभी भिड़ते
कभी तो अपनी
कोई परेशानी
मुझे दोगी
मैं तेरा हूँ जान
तेरा रहूँगा
बता दो न
कब तुम मुझे
अपना कहोगी
मेरे दिल में रहोगी
जानता हूँ तुम्हें
अपने दिल की
न कहोगी
आता हूँ हर दिन
तेरे ही दर पर
यही सोचकर
कभी तो कुछ
कहोगी
ज़माने के कितने
ही झंझट से
देखा है तुझको
लड़ते कभी भिड़ते
कभी तो अपनी
कोई परेशानी
मुझे दोगी
मैं तेरा हूँ जान
तेरा रहूँगा
बता दो न
कब तुम मुझे
अपना कहोगी
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